Mental Health – Hindi

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मानसिक स्वास्थ्य

डिसक्लेमर: इस गाइड का मकसद पेशेवर सहायता, सलाह, या इलाज करना नहीं है. यह गाइड किसी भी रूप में उस प्रक्रिया की जगह नहीं ले सकती.

ट्रिगर की चेतावनी: ट्रिगर शब्द का मतलब है ऐसी कोई बात या घटना, जो किसी चीज़ का नकारात्मक कारण बन सकती है. इस टूलकिट में कुछ शब्द ऐसे हैं जो यौन हिंसा पीड़ितों के लिए दुखद हो सकते हैं यानी उनके लिए ट्रिगर का काम कर सकते हैं. इसका मतलब है उन शब्दों या वाक्यों को पढ़ने से पीड़ित या तो असहज महसूस कर सकते हैं या फिर चिंतित हो सकते हैं. ये ट्रिगर उन्हें खराब लगने वाली स्मृतियों में वापस ले जा सकते हैं. इस टूलकिट को पढ़ते समय अगर किसी को यह अनुभव होता है, तो एक ग्राउंडिंग एक्सरसाइज़ के ज़रिए वो तुरंत बेहतर महसूस कर सकते हैं.

अपनी आँखें बंद करें और अपनी सांस पर ध्यान केंद्रित करें. अपने आप को बताएं कि आप सुरक्षित हैं और आप ठीक हैं. अपनी सांस का इस्तेमाल, मौजूदा समय के बारे में सोचने और इस समय में खुद पर ध्यान केंद्रित करने के लिए करें. ऐसा आप जितनी बार करना चाहें कर सकते हैं, या नियमित अंतराल पर करें. यह ज़रूरी नहीं आप इस टूलकि ट या गाइड को खुद पढ़ें. आप ऐसे कि सी व्यक्ति के साथ बैठकर इसमें लिखी जानकारी को समझ सकते हैं जो आपके करीब हो और आपके लिए विश्वसनीय हो.

ट्रॉमा क्या है?
ट्रॉमा, किसी हादसे से पहुंची मानसिक चोट या उसकी भावनात्मक प्रतिक्रिया है. ट्रॉमा यानी आघात, किसी एक घटना या लगातार होने वाली घटनाओं से हुए बुरे अनुभवों से हो सकता है. इसका असर मानसिक या शारीरिक दोनों रूप में पड़ सकता है और यह लंबे समय तक असर कर जीवन के लिए घातक भी हो सकता है, जिससे व्यक्ति के काम करने की क्षमता पर असर पड़े और वह मानसिक, शारीरिक, भावनात्मक या आध्यात्मिक रूप से प्रभावित हो. ट्रॉमा और उसका असर हर व्यक्ति पर अलग रूप से पड़ सकता है और हर व्यक्ति का अनुभव अलग हो सकता है. ट्रॉमा, शारीरिक चोट हो सकती है या फिर यह व्यक्ति के विश्वास, उसके मूल्यों और लक्ष्यों को प्रभावित कर सकता है.

मैं अतीत में हुई किसी बुरी घटना या आघात के कैसे उबर सकती/सकता हूं, अगर मुझे यह भी ठीक से याद नहीं कि क्या हुआ था?
हो सकता है कि आपको घटना पूरी तरह से याद नहीं हो, लेकिन, इसका मतलब यह नहीं है कि आपके साथ ऐसा नहीं हुआ. यौन हिंसा या दुर्व्यवहार से पीड़ित कुछ लोग घटना को पूरी तरह याद नहीं रख पाते. हो सकता है घटना के तुरंत बाद आप खुद को संभालने में वक्त लें या घटना को नकारने की कोशिश करें.

यौन हिंसा के बाद लंबे समय तक सामने आने वाली प्रतिक्रियाओं में शामिल हैं:   

  •   समझ में न आने वाली भावनाएं (एक समय गुस्से में होना वहीं थोड़ी देर बाद उदास हो जाना),
  •   पुरानी बातों का याद आना,
  •   परिवार और दोस्तों के साथ संबंध ठीक न रहना,
  •   शारीरिक लक्षण जैसे सिर में दर्द और उबकाई.

जबकि ये भावनाएँ सामान्य हैं, कुछ लोगों को इनके साथ अपने जीवन में आगे बढ़ने में मुश्किल महसूस हो सकती है. ऐसे में साइकोलॉजिस्ट, व्यक्ति को इन भावनाओं को समझने और खुद को संभालने के तरीके सुझाने में मदद कर सकते हैं. याद रहे, आप घटना या उससे जुड़ी बातों को लेकर क्या महसूस करते हैं इस पर ध्यान दें, भले ही यह बेहद मुश्किल हो.

मैं ट्रिगर्स की पहचान और सामना कैसे करूँ?
यौन हिंसा से उबर रहे व्यक्ति के रूप में आपके लिए यह जानना और समझना ज़रूरी है सेहतमंद होने की इस प्रक्रिया के दौरान आपके ट्रिगर्स क्या हैं. थेरेपिस्ट या लाइसेंस प्राप्त पेशेवर के साथ जुड़ कर आप इन ट्रिगर्स को समझने और उन्हें दूर करने की दिशा में काम कर सकते हैं. थेरेपिस्ट अलग-अलग तरीके इस्तेमाल कर लोगों को आघात और सदमे से उबरने में मदद करते हैं. यह मदद एक सुरक्षित और नियंत्रित माहौल में की जाती है और इसके लिए एक-एक कर प्रयास किए जाते हैं ताकि मरीज़ या ज़रूरतमंद व्यक्ति समय के साथ और सब कुछ समझते हुए अपने आघात से उबर पाए. यह प्रक्रिया उन्हें मज़बूत महसूस करवाती है और स्थितियों को संभालने में उनकी मदद करती है. 

हर किसी को अपने लिए सही डॉक्टर चुनने का अधिकार है. अगर आपको यह मुश्किल लगता है, तो इलाज शुरू करने से पहले आप थेरेपिस्ट के साथ फोन कॉल या वीडियो चैट कर सकते हैं ताकि आप यह समझ सकें को वो कैसे काम करते हैं. यह कदम आपको थेरेपी की प्रक्रिया के बारे में जानने और थेरेपिस्ट के तौर-तरीकों को समझने में मदद करेगा. इसके बाद आप अपनी आपबीती उनके साथ साझा करने में सहज महसूस करेंगे. इससे थेरेपिस्ट को भी आपके साथ एक दोस्ताना संबंध बनाने का मौका मिलेगा.

यौन हमले से उबर रहे लोग आमतौर पर किस तरह की भावनाओं या अनुभवों से गुज़रते हैं?
एक सर्वाइवर के रूप में आपने अपनी भावनाओं और व्यवहार में कई तरह के बदलाव महसूस कर सकते हैं; 

-आप अक्सर विचलित महसूस कर सकते हैं बार-बार उलझन में पड़ सकते हैं.

-ये भी संभव है कि बातचीत के दौरान आपका ध्यान भटके और आप खुद को बातचीत से दूर किसी और मन:स्थिति में उलझा हुआ पाएं.

-आपको लगे कि बोलते समय आप शारीरिक रूप से वहां मौजूद नहीं हैं.

-आप नियंत्रण से बाहर महसूस कर सकते हैं और अपने और दूसरों के साथ जुड़ाव मुश्किल लग सकता है.

-मुमकिन है कि आपको उन जगहों और उन लोगों से डर लगे जो वास्तव में आपके लिए कोई ख़तरा पैदा नहीं करते हैं .

-आप अक्सर डरा हुआ और आतंकित भी महसूस कर सकते हैं.

-ये भी संभव है कि आपको अपनी पहचान खोने का डर सताता रहे और आपको लगे कि एक व्यक्ति के रूप में आप खुद को खो रहे हैं.

शरीर पर आघात महसूस करना
हमारा मन और दिमाग़ जुड़े होते हैं और हम अपने शरीर में बहुत सा तनाव और चिंताएं लिए रहते हैं. जैसे चिंता और गंभीर परेशानी से गुज़रते हुए हमें सिर दर्द की शिकायत हो सकती है और हमारे कंधे बोझिल महसूस कर सकते हैं. इसी तरह हम अपने शरीर में भी आघात लिए हो सकते हैं और कभी-कभी इस आघात को याद कर हम बीमार जैसा महसूस कर सकते हैं. 

हमारे शरीर में आघात महसूस करना हमारा मन और शरीर जुड़ा हुआ है और हम अपने शरीर में बहुत अधिक तनाव और चिंता रखते हैं. उदाहरण के लिए कभी-कभी बहुत अधिक तनाव में होने पर हमें सिरदर्द हो सकता है या हमारे कंधे में चोट लग सकती है. इसी तरह, हम अपने शरीर में आघात भी करते हैं. कभी-कभी हमारे आघात को याद करने से हम बीमार पड़ सकते हैं. 

खुद को दोष देना
यौन हिंसा से उबर रहे कई लोग अपने साथ हुई घटना के लिए खुद को दोषी मानने लगते हैं. इसके चलते वो सदमे और आत्मग्लानि की भावना के बीच फंसे रहते हैं. ऐसे में थेरेपी यानी इलाज की एक खास प्रक्रिया ज़रूरी है क्योंकि थेरेपिस्ट आपको शर्म और अपराध बोध जैसी भावनाओं को पहचानना सिखाते हैं.

आपको फ्लैशबैक यानी पुरानी घटनाओं के बार-बार याद आने का अनुभव भी हो सकता है. आप इस बात से दुखी और ग्रस्त हो सकते हैं कि घटना के दौरान आप कुछ नहीं कर पाए और आपके शरीर को मानो लकवा मार गया था. हो सकता है कि आप लगातार ये महसूस करें कि काश आपकी प्रतिक्रिया कुछ अलग होती. खुद को याद दिलवाएं कि आपने वही किया जो उस समय आपको सबसे बेहतर लगा, और आप भले ही अतीत को बदल नहीं सकते लेकिन जिंदगी में आगे बढ़ने और शांति व उम्मीद कायम करने का मौका आपके पास हमेशा है.

क्या मुझे एक पेशेवर से मदद लेनी चाहिए?
थेरेपी आपकी भावनाओं, व्यवहार और ट्रिगर्स के बारे में आपको अधिक जागरूक बना सकती है. अगर आप ऊपर लिखी किसी भी भावनात्मक प्रतिक्रिया का सामना कर रहे हैं और आपको लगता है कि यह आपके काम, स्कूल, रिश्ते, भोजन और नींद को प्रभावित कर रही है तो परिवार के किसी विश्वसनीय सदस्य या मित्र से बात कर आप पेशेवर मदद लेने के बारे में सोचें. अगर आप अपने रोज़मर्रा के काम को नहीं संभाल पा रहे या नकारात्मक भावनाओं से निपटना मुश्किल हो रहा है, तो आपको सहायता लेने के बारे में सोचना चाहिए.

मैंने कभी थेरेपी की मदद नहीं ली है, मुझे क्या उम्मीद करनी चाहिए?
थेरेपी, या काउंसलिंग थेरेपिस्ट से मिलने की प्रक्रिया है ताकि आपके व्यवहार, विश्वास, भावनाओं या रिश्तों से जुड़े उन मुद्दों पर काम किया जा सके जो आपके लिए समस्या का कारण बन रहे हैं. थेरेपी दर्दनाक अनुभवों से उबरने और अपनी भावनाओं को समझने में अहम भूमिका निभा सकती है. इसके ज़रिए आप खुद को मज़बूत बना सकते हैं और एक बेहतर ज़िंदगी जीने में यह आपकी मदद करती है. यौन हिंसा के उबर रहे व्यक्ति की ज़रूरतों के हिसाब से थेरेपी सेशन बनाए जाते हैं. आप और आपके थेरेपिस्ट मिलकर यह तय कर सकते हैं कि किन समस्याओं और मुद्दों पर बात की जानी चाहिए और कितनी तेज़ी से आगे बढ़ा जा सकता है. यह एक अलग तरह की प्रक्रिया है जो पीड़ित की ज़रूरतों और उनकी बेहतरी को ध्यान में रख कर बनाई जाती है.   

यौन हिंसा से उबर रहे व्यक्ति को पेशेवर मदद क्यों लेनी चाहिए?
ट्रॉमा एक जटिल समस्या है और इसका आप पर क्या असर पड़ सकता है यह बताना आसान नहीं. यौन हिंसा या दुर्व्यवहार से उबर रहे हर व्यक्ति के लिए ये अलग हो सकता है और इसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता. भावनात्मक प्रतिक्रियाएँ हमारे सोचने के तरीके, व्यवहार, हमारे काम, दुनिया को देखने के नज़रिए और दूसरों के साथ बातचीत में झलकती हैं. आपका शरीर और दिमाग अगर आपको कुछ संकेत दें तो उन्हें अनदेखा न करें. थेरेपी आपको जीवन के मुश्किल अनुभवों को समझने, उनसे निपटने और उनके साथ जीने में मदद करती है. थेरेपी जैसी पेशेवर मदद आपको बेहतर महसूस करवाने में बड़ी भूमिका निभाती है.

मुझे किसके पास जाना चाहिए मनोचिकित्सक या मनोवैज्ञानिक?
मनोचिकित्सक मुख्य रूप से डॉक्टर हैं जो आपके लक्षणों के आधार पर आपको दवाएँ दे सकते हैं. मनोवैज्ञानिक वो पेशेवर हैं जिन्हें मानसिक परेशानी से गुज़र रहे लोगों की आघात, अवसाद, चिंता और संबंधों के उतार-चढ़ाव जैसी समस्याओं को दूर करने का प्रशिक्षण दिया जाता है. जैसे अगर आप गंभीर रूप से डिप्रेशन के शिकार हैं तो मनोचिकित्सक दवाओं के ज़रिए आपका इलाज कर सकते हैं, लेकिन अगर आप यौन हिंसा के चलते आत्मविश्वास की कमी या सामाजिक दबाव से जूझ रहे हैं तो मनोवैज्ञानिक इससे उबरने में आपकी मदद कर सकते हैं.  

ज़्यादातर मनोचिकित्सक और मनोवैज्ञानिक मिलकर काम करते हैं, मसलन अगर आप एक मनोवैज्ञानिक से मिलें और उन्हें लगता है कि आपको दवाओं की ज़रूरत है तो वो आपको अपनी जानकारी के किसी मनोचिकित्सक से मिलने की सलाह देंगे.

मुझे किस तरह की पेशेवर मदद लेनी चाहिए? मुझे मनोवैज्ञानिक, मनोचिकित्सक और कांउसलर में से किस के पास जाना चाहिए?
सभी लाइसेंस प्राप्त पेशेवर इलाज और थेरेपी के अलग-अलग आयामों से जुड़े होते हैं. काउंसलर के पास मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी सलाह या काउंसलिंग देने के लिए मास्टर डिग्री होती है. वो मरीज़ों के साथ बातचीत कर उन्हें ठीक करने का काम करते हैं. काउंसलर आमतौर पर उन लोगों की मदद कर सकते हैं जो चिंता, संबंधों में उतार-चढ़ाव, खाने की आदतों से जुड़े विकार, यौन विकार, जीवन में आने वाले बदलाव या नशीले पदार्थों (ड्रग्स या शराब) के सेवन के चलते भावनात्मक संकट से गुज़र रहे हों.

मनोवैज्ञानिक, पीएचडी या मनोविज्ञान में डॉक्ट्रेट हासिल कर चुके एक्पर्ट हैं. वो पेशेवर काउंसलर की तरह काम करते हैं लेकिन इसके अलावा कुछ अतिरिक्त सेवाएं भी दे सकते हैं जैसे साइकोलॉजिकल या मेडिकल जांच की ज़रूरतों को पहचानना या फिर मरीज़ की ज़रूरतों के मुताबिक डॉक्टर से सलाह कर उनको दवाएँ देना. उनके पास साइकोथेरेपी देने का खास प्रशिक्षण होता है.

मनोचिकित्सक वो मेडिकल डॉक्टर हैं जिन्होंने मनोविज्ञान की पढ़ाई कर उसमें खास किस्म की ट्रेनिंग हासिल की है. वो अवसाद यानी डिप्रेशन, चिंता, और गंभीर मानसिक विकारों जैसे बाइपोलर डिसऑर्डर और सिज़ोफ्रेनिया का इलाज करते हैं. मनोचिकित्सक निजी मेडिकल सेंटर, अस्पतालों या चिकित्सा केंद्रों में काम करते हैं, क्योंकि वो लाइसेंस प्राप्त मेडिकल डॉक्टर हैं, जो मरीज़ों को दवाएँ देने का अधिकार रखते हैं. 

पेशेवर मदद लेने का क्या कोई सही समय या समय रेखा है?
इलाज करवाने और थेरेपी लेने का कोई सही या गलत समय नहीं है. यह पूरी तरह से आप पर निर्भर करता है कि आप पेशेवर मदद लेने और अपनी समस्याओं से निपटने के लिए कब तैयार है.

क्या मुझे दवाओं की ज़रूरत पड़ेगी? दूसरे लोग क्या सोचेंगे?
आपकी भावनात्मक ज़रूरतों और लक्षणों के आधार पर यह तय किया जाएगा कि आपको दवाओं की ज़रूरत है या नहीं. हर व्यक्ति अलग होता है. यौन हिंसा से उभरे लोग अक्सर पेशेवर मदद लेने से कतराते हैं क्योंकि उन्हें समाज और लोगों का डर रहता है या वो इस प्रक्रिया को कलंक के रूप में देखते हैं. ध्यान रखें किसी भी चीज़ से ज़्यादा ज़रूरी है आपका ठीक होना और बेहतर महसूस करना.

मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी सहायता पाने के लिए सस्ते विकल्प क्या हैं?
सभी बड़े शहरों में ऐसे कई (निजी या गैर-लाभकारी) संगठन हैं जो रियायत के साथ यानी कम पैसों में काउंसलिंग और इलाज की सुविधा देते हैं. इनमें से कुछ मुफ्त भी हैं. ये संगठन व्यक्ति की आय के मुताबिक अपनी फ़ीस तय करते हैं. आप ग्रुप थेरेपी यानी समूह के साथ थेरेपी भी ले सकते हैं, जिसकी फ़ीस कम रहती है और इसके ज़रिए आपको दूसरे लोगों से जुड़ने और खुद को मज़बूत बनाने में मदद मिल सकती है.

क्या काउंसलिंग और थेरेपी सेशन में जाने का मतलब है कि मैं भावनात्मक रूप से कमजोर हूं?
यह पहचानने के लिए बहुत साहस चाहिए कि आपको अपनी मुश्किल भावनाओं, व्यवहार या दर्दनाक अनुभवों को दूर करने के लिए मदद की ज़रूरत है. काउंसलिंग आपको ठीक होने की प्रक्रिया के बारे में बताती है और उस दिशा में काम करने में मदद करती है. हालांकि यह एक लंबी और चुनौती पूर्ण प्रक्रिया हो सकती है, लेकिन इससे आप अधिक सशक्त और मज़बूत महसूस कर सकते हैं. थेरेपी से गुज़रने वाले लोगों के मुताबिक, थेरेपी ने उन्हें अपने साथ हुई घटनाओं या अपने सदमे के बारे में बात करने के लिए एक सुरक्षित जगह उपलब्ध करवाई जहां वो बिना किसी झिझक और अपने बारे में धारणाएं बनाए जाने की चिंता से मुक्त होकर अपनी आपबीती कह सकते हैं.

अपनी रिकवरी यानी ठीक होने की प्रक्रिया के दौरान आप यह भी महसूस कर सकते हैं कि ठीक होना, न केवल चुप्पी तोड़ने और अपने आघात के बारे में बात करने से जुड़ा है बल्कि घटना या कोई सदमा आप पर कैसे असर कर रहा है, यह समझना भी ठीक होने की प्रक्रिया का हिस्सा है. पुरानी किसी घटना या हादसे ये जुड़े ट्रिगर और भावनाएं आज भी आपको प्रभावित कर सकते हैं. अपने मन और शरीर से मिल रहे संकेतों की ओर ध्यान दें और जब आप तैयार महसूस करें तो उनसे निपटने के लिए पेशेवर मदद लें.

क्या मुझे दर्दनाक यादों या पिछले अनुभवों को फिर से याद करने के लिए कहा जाएगा?
थेरेपी और काउंसलिंग की प्रक्रिया आपकी पिछली यादों को ताज़ा करने से कहीं ज़्यादा आगे है.

  • यह आपकी भावनाओं, ट्रिगर्स, व्यवहार और अनुभवों को खंगालने और उन्हें समझने की एक प्रक्रिया है.
  • आप और आपके थेरेपिस्ट को घटना को फिर से याद करने और उससे जुड़ी बातों को दोहराने की ज़रूरत महसूस हो सकती है ताकि आप उन दर्दनाक अनुभवों से उबर सकें और उनका सामना कर सकें.
  • काउंसलर या डॉक्टर इस प्रक्रिया को आसान बना सकते हैं एक ऐसा माहौल तैयार कर जहां आप शांत और सहज महसूस करें (जैसे उनके दफ्तर में) और खुद को व्यक्त करने के तरीके सुझा कर.

थेरेपिस्ट का काम हर कदम पर और हर तरह से आपकी मदद करना है. वो इस विश्वास को मजबूत करते हैं कि आप इस प्रक्रिया में अकेले नहीं हैं. साथ ही, आपको ऐसा कुछ भी नहीं करना है जिससे आप असुरक्षित महसूस करें. यदि आपका थेरेपिस्ट आपसे ऐसी कोई बात पूछता है, जिसके बारे में बात करने के लिए आप तैयार नहीं हैं, तो आप इसके बारे में चर्चा कर सकते हैं और उन्हें इस बारे में अवगत करवा कर सकते हैं

मुझे कितने समय तक थेरेपी की आवश्यकता होगी?
थेरेपी का मकसद आपको सदमे से उबरने और उससे निपटने में सक्षम बनाना है. एक बार जब आप अपनी भावनाओं और संवेदनाओं को नियंत्रित करने को लेकर सशक्त महसूस करते हैं तो आपकी थेरेपी की ज़रूरत कम हो जाती है. अगर आपको फिर से मदद या सलाह की ज़रूरत महसूस हो थेरेपिस्ट के पास लौटने में संकोच न करें.     

मैं थेरेपिस्ट को कैसे खोज सकती/सकता हूं?
ऐसे कई काउंसलिंग सेंटर, निजी पेशेवर यानी एक्सपर्ट और गैर-सरकारी संगठन हैं जो पेशेवर रूप से मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी सेवाएं देते हैं. आप इन लोगों या संगठनों के बारे में उनकी वेबसाइट पर जानकारी पा सकते हैं. आप उनके द्वारा दिए जाने वाली अलग-अलग सेवाओं, इलाज के तरीकों और भुगतान के तरीकों की तुलना कर सकते हैं और उस विकल्प को चुन सकते हैं जो आपके लिए सबसे बेहतर और सुविधाजनक हो. अगर आप स्कूल या कॉलेज के छात्र हैं, तो आप अपने परिसर में मौजूद सलाहकार से भी पेशेवर मदद ले सकते हैं. थेरेपिस्ट की जानकारी आप अपने डॉक्टर या किसी ऐसे व्यक्ति से भी ले सकते हैं जिस पर आपको विश्वास हो. यहां उन थेरेपिस्ट की सूची दी गई है जो भारत में यौन हिंसा के शिकार लोगों के साथ काम करते हैं.  

यौन हिंसा पीड़ितों के लिए किस तरह की थेरेपी उपलब्ध है?
किसी भी थेरेपी यानी इलाज की एक खास प्रक्रिया की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि पीड़ित व्यक्ति थेरेपिस्ट के साथ कितना सहज है. यह एक लंबी प्रक्रिया हो सकती है जिसके लिए पीड़ित व्यक्ति और थेरेपिस्ट दोनों की तरफ से ज़िम्मेदारी और प्रतिबद्धता ज़रूरी है. 

सामान्य बातचीत पर आधारित टॉक-थेरेपी में पीड़ित को अपने दर्दनाक अनुभवों या उससे जुड़े किसी मसले को लेकर अपने विचारों, भावनाओं और चिंताओं को साझा करने के लिए कहा जाता है. अनुसंधान के मुताबिक सहानुभूति से भरे किसी पेशेवर सलाहकार से बात करना और उसका सहारा मिलना बेहद मददगार साबित होता है. इसके अलावा, कई और थेरेपी हैं जो खासतौर पर पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTSD) यानी हादसे से जन्मे मनोवैज्ञानिक विकारों का इलाज करने में सहायक हैं.

नीचे उन थेरेपी की जानकारी है जो ट्रॉमा का इलाज करने में सहायक होती हैं:

संज्ञानात्मक व्यवहार थेरेपी या कॉगनिटिव बिहेवियर थेरेपी, सीबीटी (CBT)
संज्ञानात्मक व्यवहार थेरेपी (Cognitive Behaviour Therapy) सीबीटी, मनोचिकित्सा यानी साइकोथेरेपी का एक रूप है जो इस बात को समझने पर ज़ोर देती है कि किसी व्यक्ति के विचार, उसकी धारणाएं और दृष्टिकोण उसकी भावनाओं और व्यवहार पर कैसे असर डालते हैं. सीबीटी के आधार पर इलाज करने वाले मानते हैं कि समस्याएँ किसी घटना के साथ जोड़ दिए गए अर्थों से पैदा होती है. अनचाहे विचार व्यक्ति के लिए अलग-अलग परिस्थितियों को मुश्किल बना सकते हैं और उसके आत्मविश्वास को तोड़ सकते हैं. सीबीटी का व्यक्ति पर सकारात्मक प्रभाव हो सकता है जिससे कि वो बेहतर महसूस करे और अपनी स्थितियों और चुनौतियों से निपटने में कामयाब हो. सीबीटी के ज़रिए आप जान सकते हैं कि बुरे विचारों (ऐसे विचार जो आपको नकारात्मक बनाएं या आपके आसपास बदलती स्थितियों से निपटने में कारगर न हों) का कैसे सामना करें. साथ ही यह आपको तनावपूर्ण परिस्थितियों से बचने और आपके द्वारा महसूस की जा रही दूसरी समस्याओं का मुकाबला करने में मदद करती है. सीबीटी के माध्यम से पीड़ित व्यक्ति अपनी सीमाओं और रुकावटों को पार कर सदमे से उबरने में सफल हो सकता है.

प्रोलॉंग एक्सपोज़र थेरेपी (Prolonged Exposure Therapy) या पीई (PE)
यह एक तरह की संज्ञानात्मक व्यवहार (Cognitive Behaviour) थेरेपी है जो व्यक्ति को अपने डर और ट्रॉमा से उबरने में मदद करती है. इसमें पीड़ित व्यक्ति का उसके डर या सदमे से सामना करवाया जाता है. उसका उन जगहों, व्यक्तियों या चीज़ों से सामना करवाया जाता है जो घटना से जुड़ी बुरी स्मृतियों को दोहराएं. इसके बाद पीड़ित व्यक्ति ट्रॉमा से जुड़ी बातों और यादों से खुद को आज़ाद करने कोशिश करता है और अपनी भावनाओं और प्रतिक्रियाओं पर नियंत्रण करना सीख पाता है.

आई मूवमेंट डीसेंसिटाइज़ेशन एंड रीप्रॉसेसिंग या ईएमडीआर (EMDR)
यह थेरेपी का एक प्रकार है जो भावनात्मक कष्ट के इलाज के लिए इस्तेमाल की जाती है. इसमें थेरेपिस्ट आपके चेहरे के सामने उंगलियों को घुमाते हैं और आपको घूमती उंगलियों पर लगातार नज़र रखने को कहा जाता है. इसके साथ ही वो आपको ऐसी किसी घटना को याद करने को कहेंगे जो आपके लिए दुख का कारण हो. वे आपसे उन भावनाओं और शरीर की संवेदनाओं के बारे में पूछेंगे जो आप उस वक्त महसूस कर रहे हों. इसके बाद थेरेपिस्ट आपको अपने विचारों को सुखद यादों पर केंद्रित करने को कहेंगे और इसके ज़रिए आपके दिमाग़ में एक सुरक्षित कोना तैयार करेंगे. अंत में आपसे पूछा जाएगा कि इस प्रक्रिया के बाद आप खुद को कितना हल्का या दुखी महसूस कर रहे हैं. इस थेरेपी को यौन हिंसा से उबर रहे लोगों में बुरी घटनाओं या बुरी स्मृतियों से उबरने की ताकत पैदा करने को लेकर मददगार पाया गया है.   

ग्रुप थेरेपी यानी समूह चिकित्सा
समूह के साथ थेरेपी लेने या यौन हिंसा से उबर रहे दूसरे लोगों के साथ मदद लेने से आपको एहसास होता है कि आप अकेले नहीं हैं. आप दूसरों की ताकत से खुद को मज़बूत महसूस कर सकते हैं और दूसरों को प्रेरित करने में आपकी भूमिका हो सकती है.  

कुछ थेरेपिस्ट साइकोडायनमिक थेरेपी का इस्तेमाल करते हैं. यह एक ऐसी थेरेपी है, जो पीड़ित व्यक्ति के अपने माता-पिता या देखभाल करने वालों के साथ हुए पुराने अनुभवों को समझने में मदद करती है. इससे इस बात का पता लगाया जा सकता है कि संबंधों को लेकर व्यक्ति की भावनात्मक ज़रूरतें क्या और कैसी हैं. इस तरह की थेरेपी उन लोगों के लिए काफी मददगार हो सकती है, जिनके जीवन में ऐसा व्यक्ति आघात या सदमे की वजह रहा हो जो उनका अपना या कोई परिचित है.

अपने ट्रॉमा के बारे में दूसरों को बताना
ट्रॉमा या कोई भी सदमा आपको गहराई से प्रभावित करता है और लोगों के साथ आपके रिश्तों और संबंधों को बदल सकता है. यदि आप अपने साथ हुई घटना के बारे में बताने का फैसला करते हैं, तो आप ऐसा कब और कैसे करेंगे यह पूरी तरह आप पर निर्भर है. आप किस पर विश्वास करते हैं और किससे अपनी बात कहना चाहते हैं यह भी आपका निर्णय है. हो सकता है कि यौन हिंसा के बारे में बात करना आपको भावनात्मक रूप से परेशान करता हो क्योंकि आप जिस व्यक्ति पर विश्वास कर रहे हैं वो नकारात्मक प्रतिक्रिया दे सकता है.

आप जब भी अपने परिवार के सदस्यों, दोस्तों या रिश्तेदारों के साथ अपनी आपबीती साझा करें, तो मुमकिन है कि उनकी प्रतिक्रिया तीखी या नकारात्मक हो. वो बेहद परेशान या गुस्सा हो सकते हैं, और ये महसूस कर सकते हैं कि वो आपको सुरक्षित रखने में कामयाब नहीं रहे. आपके परिवार की ये प्रतिक्रिया उनके अपने पालन-पोषण, जीवन मूल्यों और विश्वास प्रणाली पर निर्भर करती है. इससे उनके व्यवहार में गहरा बदलाव भी आ सकता है जैसे वो आपकी देखभाल को लेकर बेहद गंभीर हो सकते हैं लेकिन साथ ही घटना के लिए आपको दोष दे सकते हैं. यह गलत नहीं होगा अगर आप अपने साथ खड़े लोगों से इस व्यवहार को बदलने और आपके प्रति सकारात्मक होने के लिए कहें.

यह ध्यान रखना ज़रूरी है कि:

  • हो सकता है कि जिस व्यक्ति को आपने सारी बात बताई वो आपकी मदद न कर पाए या आपकी सहायता करने की इच्छा न रखता हो. याद रखें कि आप अकेले नहीं हैं. अगर एक व्यक्ति सहायक नहीं है तो इसका मतलब ये नहीं कि कोई आपकी सहायता नहीं करेगा.
  • आपको ऐसे किसी भी सवाल का जवाब देने से इनकार करने का अधिकार है जो आपको असहज महसूस करवाए या ठीक न लगे.

आपको इस बात का अधिकार है कि आप तभी अपनी भावानाएं ज़ाहिर करें जब आप अपनी शर्तों पर खुद को सुरक्षित महसूस करें. आपको यह भी अधिकार है कि आप कम से कम यानी उतनी ही जानकारी दें जितने में आप सहज हों.

  • हो सकता है कि आप यौन हिंसा के शिकार दूसरे लोगों से अपनी बात कहने में अधिक सहज हों. पीड़ितों के कई सपोर्ट ग्रुप ऑनलाइन और ऑफलाइन मौजूद हैं
  • आप सार्वजनिक रूप से भी अपनी बात कह सकते हैं. ये पूरी तरह आपका फैसला है.
  • हो सकता है कि आप जो महसूस करते हैं उसे कहने के लिए आप वैकल्पिक तरीकों का इस्तेमाल करना चाहें. कला, साहित्य, नृत्य, और गीत-संगीत हमारी भावनाओं को समझने और दूसरों के साथ बातचीत करने का कारगर ज़रिया हो सकते हैं.
  • अपने साथ हुई घटना के बारे में दूसरों को बताने के लिए अगर आप मदद चाहते हैं तो ऐसे कई संगठन और पेशेवर मौजूद है जो इस प्रक्रिया में आपकी मदद कर सकते हैं और आपके साथ खड़े हो सकते हैं. जरूरत पड़ने पर मदद लेने में संकोच न करें.
  • आप यह भी चुन सकते हैं कि बाहरी दुनिया से कुछ भी न कहें और यह किसी भी रूप में गलत नहीं है. अपनी भावनाएं या आपबीती साझा करने का दबाव इसलिए महसूस न करें क्योंकि कोई और ऐसा कर रहा है. अपनी कहानी तभी बताएँ जब आप इसके लिए तैयार हों.