Step by Step Guide – Hindi

4-Understanding-Legal-Proceduresv2

हमला करने वाले व्यक्ति के खिलाफ कानूनी कार्रवाई कैसे करे?

डिस्क्लेमर: इस गाइड का मकसद पेशेवर सहायता, सलाह, या इलाज करना नहीं है. यह गाइड किसी भी रूप में उस प्रक्रिया की जगह नहीं ले सकती.

ट्रिगर की चेतावनी: ट्रिगर शब्द का मतलब है ऐसी कोई बात या घटना, जो किसी चीज़ का नकारात्मक कारण बन सकती है. इस टूलकिट में कुछ शब्द ऐसे हैं जो यौन हिंसा पीड़ितों के लिए दुखद हो सकते हैं यानी उनके लिए ट्रिगर का काम कर सकते हैं. इसका मतलब है उन शब्दों या वाक्यों को पढ़ने से पीड़ित या तो असहज महसूस कर सकते हैं या फिर चिंतित हो सकते हैं. ये ट्रिगर उन्हें खराब लगने वाली स्मृतियों में वापस ले जा सकते हैं. इस टूलकिट को पढ़ते समय अगर किसी को यह अनुभव होता है, तो एक ग्राउंडिंग एक्सरसाइज़ के ज़रिए वो तुरंत बेहतर महसूस कर सकते हैं.

अपनी आँखें बंद करें और अपनी सांस पर ध्यान केंद्रित करें. अपने आप को बताएं कि आप सुरक्षित हैं और आप ठीक हैं. अपनी सांस का इस्तेमाल, मौजूदा समय के बारे में सोचने और इस समय में खुद पर ध्यान केंद्रित करने के लिए करें. ऐसा आप जितनी बार करना चाहें कर सकते हैं, या नियमित अंतराल पर करें. यह ज़रूरी नहीं आप इस टूलकि ट या गाइड को खुद पढ़ें. आप ऐसे कि सी व्यक्ति के साथ बैठकर इसमें लिखी जानकारी को समझ सकते हैं जो आपके करीब हो और आपके लिए विश्वसनीय हो.

पहला चरण: प्रथम सूचना रपट यानी एफ़आईआर दर्ज करना

सबसे पहला कदम या ज़रूरी काम है अपने नज़दीकी थाने में एफ़आईआर दर्ज करना. एफ़आईआर घटना या मामले को विस्तार से बताने वाली आधिकारिक रिपोर्ट है.

महिलाओं से जुड़े अपराध जैसे यौन हिंसा, यौन उत्पीड़न, बलात्कार या यौन दुर्व्यवहार की  एफ़आईआर करवाते समय महिला पुलिस अधिकारी द्वारा मामला दर्ज किया जाना ज़रूरी है.  एफ़आईआर दर्ज होने के बाद पुलिस जांच करती है और मामले को संबंधित कोर्ट में भेजती है.

  • बेहतर है कि घटना के 24 घंटे के अंदर एफ़आईआर दर्ज करवाई जाए. साथ ही घटना के बाद पुलिस को जल्द से जल्द सूचित करना बेहतर है.
  • अगर पीड़ित खुद पुलिस थाने नहीं जा सकती/सकता तो उसके परिवार के सदस्य पुलिस को कॉल कर घर या अस्पताल, जहां भी पीड़ित मौजूद हो वहां बुला सकते हैं6.
  • पीड़िता का परिवार भी उनके एवज़ में यानी उनके लिए एफ़आईआर दर्ज करा सकता है
  •  एफ़आईआर बाद में भी दर्ज करवाई जा सकती है जब पीड़ित इसके लिए तैयार हो.
  • अगर एफ़आईआर करवाने में देर हो तो इसकी वजह साफ और स्पष्ट रूप से बताई जानी चाहिए7. जैसे हो सकता है कि पीड़ित लंबे समय तक (कई महीने या साल) घटना के बारे में लोगों को न बता पाए. ऐसे मामलों में भी एफ़आईआर दर्ज हो सकती है8. घटना के बाद आप कभी भी एफ़आईआर दर्ज करवा सकते/सकती हैं. कई साल की देरी के बाद भी.

एफ़आईआर को सुरक्षित रखना: एफ़आईआर में अपराध से जुड़ी सभी जानकारियां विस्तार से लिखी जानी चाहिएं. पुलिस अधिकारी के लिए ज़रूरी है कि वो एफ़आईआर में लिखी सभी बातों और जानकारियों का ब्यौरा शिकायतकर्ता को पढ़कर सुनाए और इसके बाद ही पीड़ित या शिकायतकर्ता को एफ़आईआर पर साइन करने चाहिए. अधिकारी को चाहिए कि एफ़आईआर दर्ज होने की जानकारी इसके लिए बनाई गई एक खास पुस्तिका में भी दर्ज करे. इस एफ़आईआर की एक कॉपी शिकायतकर्ता को मुफ्त उपलब्ध करवाई जानी चाहिए. एफ़आईआर दर्ज किए जाने की तारीख़ और एफ़आईआर का रजिस्ट्रेशन नंबर नोट कर लें और अपने पास संभाल कर रखें.

एफ़आईआर दर्ज करने से मना किए जाने पर: पुलिस अधिकारी अगर एफ़आईआर दर्ज करने से मना कर दे तो आप उनसे बड़े अधिकारियों जैसे उनके सुपरवाइज़र या ऑफ़िसर-इन-चार्ज   से संपर्क कर सकते हैं.

एक पुलिस स्टेशन से दूसरे पुलिस स्टेशन एफ़आईआर स्थानांतरित करना: यदि अधिकार क्षेत्र अलग होने के चलते एफ़आईआर को किसी दूसरे पुलिस स्टेशन में स्थानांतरित किया जाता है, यानी पहला पुलिस स्टेशन उस क्षेत्र पर अधिकार नहीं रखता है जहां अपराध हुआ, तो पहली एफ़आईआर को रद्द घोषित कर दिया जाता है. एफ़आईआर अब उस नए पुलिस स्टेशन में ही मान्य होगी जहां इसे स्थानांतरित किया गया है.

बलात्कार का मामला दर्ज करने और प्राथमिकी (एफ़आईआर) दर्ज करने के बाद, इसकी सामग्री यानी इसमें मौजूद तथ्यों और जानकारी को बदला नहीं जा सकता. केवल उच्च न्यायालय ही एफ़आईआर को खारिज कर सकता है.  

जब पुलिस आपकी शिकायत को गैर-संज्ञेय अपराध (नॉन कॉगनिज़ेबल ऑफेंस, यानी ऐसा मामला जिसमें बिना वारंट पुलिस अधिकारी किसी को गिरफ्तारी नहीं कर सकते) के तौर पर दर्ज करती है तो अधिकारी आपको जो कागज़ देते हैं उसे "एनसी" यानी गैर संज्ञेय शिकायत रिकॉर्ड, कहते हैं.  

एफ़आईआर दर्ज होने के बाद, यदि मामला आगे बढ़ाने के लिए पर्याप्त सबूत हैं, तो एक चालान तैयार किया जाता है. यदि पर्याप्त सबूत नहीं हैं, तो एफ़आईआर को अनट्रेसेबल या अप्राप्य घोषित किया जाता है. यदि एफ़आईआर झूठी पाई जाती है, तो इसे पूरी तरह से रद्द किया जा सकता है. एफ़आईआर झूठी है या नहीं, यह पता लगाने के लिए विस्तार से जांच की जरूरत है.

जांच या इनवेस्टिगेशन
बलात्कार का मामला दर्ज करने और प्राथमिकी दर्ज करवाने के बाद, शिकायतकर्ता (पीड़ित) या जानकारी देने में सक्षम व्यक्ति को आगे के बयान देने के लिए पुलिस स्टेशन बुलाया जाता है. इस दौरान संभावित अपराधी की पहचान या कुछ सवालों के जवाब देने के लिए कहा जाता है. जांच में पुलिस द्वारा सबूत जुटाए जाते हैं.

  • ऐसा कोई भी सबूत जो अपराध के समय और स्थान पर पीड़ित, गवाहों और अपराधियों की मौजूदगी साबित कर सकता है, मामले के लिए बहुत ज़रूरी है और उसे दर्ज किया जाता है.
  •  इसके अलावा फोरेंसिक या ठोस सबूत इकट्ठा करने के लिए अपराध स्थल की जांच की जाती है ताकि इन सबूतों को पीड़ित द्वारा दिए गए बयान और ब्यौरे से मिलाया जा सके.

अभियुक्त या आरोपी की गिरफ्तारी
पुलिस द्वारा आरोपी की पहचान किए जाने के बाद, अगर वो जानती है कि वो कौन हैं और कहां है, तो पुलिस उसे गिरफ्तार कर सकती है.

  • कभी-कभी, कई संदिग्धों को गिरफ्तार किया जाता है और आधिकारिक रूप से पहचान परेड (यानी कई लोगों के बीच सही अपराधी को पहचानने की कार्रवाई) के ज़रिए आरोपी की पहचान की जाती है. इसके बाद दूसरों लोगों को छोड़ दिया जाता है.
  • अभियुक्त या आरोपी व्यक्तियों को क्रिमिनल प्रोसीजर कोड यानी आपराधिक दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 53 के तहत मेडिकल जांच के लिए भेजा जाता है. इस दौरान उनके शरीर पर मौजूद उन निशानियों और संकेतों की जांच की जाती है जिनकी जानकारी पीड़ित ने अपने बयान में दी हो. यह जांच पुलिस के आदेश पर एक पंजीकृत डॉक्टर द्वारा की जाती है.

यह दोहराना ज़रूरी है कि, सबूतों की कमी या न मिल पाने का मतलब यह नहीं है कि बलात्कार नहीं हुआ है. इसके बाद पीड़ित और मामले से जुड़े गवाह मजिस्ट्रेट के सामने अपना बयान या घटना का पूरा ब्यौरा दर्ज करवाते हैं.

ऐसे मामलों में जहां अभियुक्त (यानी जिस व्यक्ति ने हमला किया है) की पहचान हो चुकी हो, आरोपी को एफ़आईआर दर्ज किए जाने वाले दिन ही या उसके अगले दिन गिरफ्तार किया जा सकता है.

चार्जशीट के बारे में ज़रूरी बातें: जांच पूरी हो जाने के बाद, यदि मामला सही पाया जाता है और उससे जुड़े सबूत मिल जाते हैं, तो चार्जशीट दायर की जाती है. पुलिस सत्र न्यायालय यानी सेशन कोर्ट में जांच का विस्तृत ब्यौरा पेश करती है, जिसमें एफ़आईआर और सबूत सहित पुलिस द्वारा जुटाई गई सभी जानकारियों को शामिल किया जाता है. चार्जशीट अदालत में पेश की जाती है,  और फिर मामला सुनवाई के लिए जाता है.

चार्जशीट पुलिस द्वारा मजिस्ट्रेट को सौंपी गई एक रिपोर्ट है जो बताती कि मामले की अदालत में सुनवाई के लिए अपराध के बारे में पर्याप्त सबूत इकट्ठा किए गए हैं. एफ़आईआर दर्ज होने के 90 से 120 दिन के अंदर चार्जशीट दाखिल जाती है. पीड़ित सरकारी वकील या अपने वकील के ज़रिए कोर्ट से चार्जशीट प्राप्त कर सकता/सकती है.

ज़रूरी नहीं कि पुलिस द्वारा चार्जशीट हमेशा तय समय के भीतर दायर की जा सके. ऐसे मामले सामने आए हैं जिनमें पुलिस को जांच पूरी करने और चार्जशीट दाखिल करने में अधिक समय लगा.

अगर आप जांच से संतुष्ट नहीं हैं तो क्या करें: अगर किसी वजह से पीड़ित या शिकायतकर्ता जांच से संतुष्ट नहीं है, तो ठोस और सही कारणों के साथ वो मजिस्ट्रेट या उच्च न्यायालय का दरवाज़ा खटखटा सकते हैं. इसके लिए ज़रूरी है कि आप दिखा सकें कि आपको न्याय नहीं मिला है या सबूतों की अनदेखी हुई है.

न्याय न मिलने या घोर अन्याय के कुछ उदाहरण: कार्यवाही में पूर्वाग्रह या पक्षपात, फैसले को बदलने के लिए दबाव या दबंगई का इस्तेमाल, मामले को वापस लेने के लिए पीड़ित पर दबाव आदि. यह समझने के लिए कि मामले में घोर अन्याय हुआ है या नहीं सबसे ज़रूरी संकेत है, कार्यवाही में निष्पक्षता यानी दोनों पक्षों के साथ एक जैसा और न्यायपूर्ण बर्ताव न किया जाना.

 

दूसरा चरण: मेडिकल जांच करवाना

पीड़ित की मेडिकल जांच भी करवाई जाती है ताकि यौन हिंसा के सभी सबूतों के साथ इससे जुड़ी जानकारी भी दर्ज की जा सके. हालाँकि, यह ध्यान रखें कि सबूत न मिलने का यह मतलब नहीं है कि बलात्कार या हमला नहीं हुआ.  

प्राथमिकी यानी एफ़आईआर दर्ज होने के बाद, पुलिस पीड़ित व्यक्ति के साथ नज़दीकी अस्पताल या हेल्थ सेंटर जाएगी ताकि मेडिकल जांच करवाई जा सके. ध्यान रहे घटना के 24 घंटे के भीतर मेडिकल जांच हर लिहाज़ से बेहतर है. कृपया ये भी ध्यान रखें कि डॉक्टर या अस्पताल के कर्मचारी को जांच करने के लिए पुलिस का इंतज़ार करने की ज़रूरत नहीं है और न ही वो जांच के लिए मना कर सकते हैं, अगर पीड़ित पुलिस के पास जाने से पहले उनके पास आने का विकल्प चुनता/चुनती है. पीड़ित के महिला होने के मामले में एक महिला पुलिस अधिकारी उसके साथ अस्पताल जाएगी. ऐसे मामले में मेडिकल जांच अगर पुरुष डॉक्टर द्वारा की जा रही है तो उस कमरे में एक महिला नर्स या परिचित का होना ज़रूरी9 है. मेडिकल जांच के बारे में ज़्यादा जानकारी के लिए, मेडिकल जांच का सेक्शन देखें.

अवैध करार दिए जा चुके- टू-फ़िंगर टेस्ट के बारे में जानकारी

कृपया ध्यान रखें कि मेडिको-लीगल मामलों (MLC) को लेकर स्वास्थ्य मंत्रालय (MoHFW) द्वारा जारी किए गए दिशा निर्देशों के मुताबिक, डॉक्टर या मेडिकल प्रैक्टिशनर, टू-फ़िंगर टेस्ट नहीं कर सकते. दो-उंगलियों द्वारा की जाने वाली जांच (जिसे पीवी यानी पर-वैजाइनल टेस्ट के रूप में भी जाना जाता है) एक ऐसी जांच है जो योनि की "शिथिलता" (आंतरिक चौड़ाई या ढीलापन) और हाइमन की उपस्थिति या अनुपस्थिति को जाँचने के लिए किया जाता है. दिशा निर्देश जारी किए जाने से पहले, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि टू-फ़िंगर टेस्ट “गैर-कानूनी, मनमाने रूप से किया जाने वाला और पीड़ित के सम्मान को ठेस पहुंचाने वाला10 है” साल 2013 में दिए गए अपने एक फैसले में कोर्ट ने कहा कि बलात्कार पीड़ितों पर किया जाने वाला टू-फ़िंगर टेस्ट उनकी निजता के अधिकार का हनन, उन्हें शारीरिक और मानसिक रूप से परेशान करने वाला और उनकी गरिमा को ठेस पहुंचाने वाला है. इसके बाद टू-फ़िंगर टेस्ट को बैन कर दिया गया.

पीड़ित के पास मेडिकल रिपोर्ट मांगने और उसकी एक कॉपी अपने पास रखने का अधिकार भी है. इस रिपोर्ट को जांच अधिकारी के साथ भी साझा किया जाना चाहिए.  

तीसरा चरण: वकील तय करना

एफ़आईआर दर्ज होने और मेडिकल जांच के बाद बयान दर्ज किया जाता है. मजिस्ट्रेट के सामने पीड़ित को अपनी गवाही यानी औपचारिक बयान दर्ज करवाना होता है. यह भी, प्री-ट्रायल स्टेज यानी मुक़दमे से पहले की कार्यवाही का हिस्सा है. यह सुझाव दिया जाता है कि मजिस्ट्रेट के सामने बयान दर्ज करवाने के लिए पीड़ित को कानूनी सलाह लेनी चाहिए या फिर एक वकील को अपने साथ लेना चाहिए.

सरकारी वकील और निजी वकील
आपराधिक मामलों में,  पीड़ित की ओर से पब्लिक प्रॉसीक्यूटर यानी राज्य द्वारा नियुक्त वकील, मामले पर बहस करता है. पीड़ित के पास अपने लिए एक निजी वकील करने या लीगल एड यानी कानूनी सहायता मांगने का विकल्प भी है, यदि वो वकील की फ़ीस का भुगतान करने में असमर्थ है. हालांकि, निजी वकील की इन मामलों में सीमित भूमिका रहती है और वो पब्लिक प्रॉसीक्यूटर की सहायता करते हैं. कृपया ध्यान दें कि आम तौर पर पब्लिक प्रॉसीक्यूटर पीड़ितों के साथ बातचीत नहीं करते इसलिए एक निजी वकील की सेवाएं लेना बेहतर है. पीड़ित की आय या उसकी आर्थिक हालत कैसी भी हो उसका बचाव करने और कानूनी कार्यवाही के लिए एक वकील की नियुक्ति और उसका भुगतान जिला राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण, राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण या राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा ही किया जाता है11.

कानूनी सहायता
कानूनी मदद मांगने के लिए पीड़ित को एक आवेदन-फॉर्म भरना होगा. यह फॉर्म भारत के सभी जिला मुख्यालयों और सब-डिविज़नल (उप-विभागीय) मुख्यालयों से मुफ्त प्राप्त किया जा सकता है. यह प्रक्रिया निजी रूप से या फिर नाल्सा (NALSA) की वेबसाइट पर ऑनलाइन पूरी की जा सकती है12.

 

चौथा चरण: कोर्ट की प्रक्रिया

प्री-ट्रायल यानी मुकद्दमे के पहले की कार्यवाही को पूरा होने में लगभग 2-3 महीने लगते हैं. इसके बाद सबूत और गवाह पेश करने, कानूनी बहस, तथ्यों की पड़ताल और अपराध साबित हो सकता है या नहीं यह जानने के लिए मामले को अदालत में लाया जाता है13 अन्य गवाहों के साथ मामले की सुनवाई के दौरान पीड़ित को भी पूछताछ और जिरह में शामिल किया जा सकता है.

सरकारी वकील और अभियुक्त या आरोपी के वकील पदभार संभालते हैं. मामला अदालत में जाने के बाद पीड़ित या शिकायतकर्ता अपने लिए वकील नियुक्त कर सकते हैं. दोनों पक्ष अपनी दलीलें सामने रखते हैं जिस दौरान पीड़ित, गवाहों और आरोपियों से पूछताछ की जाती है.

यदि मामला बलात्कार का है, तो अदालत में मामले की लगभग रोज़ाना सुनवाई होनी चाहिए और चार्जशीट दाखिल करने की तारीख से 2 महीने के अंदर उसे पूरा किया जाना चाहिए. बलात्कार के मामले की सुनवाई हमेशा कैमरे में रिकॉर्ड की जाती है यानी आम जनता इस सुनवाई का हिस्सा नहीं हो सकती.

 

References


6. महिलाओं के कानूनी अधिकारों को लेकर तैयार की गई एक विस्तृत गाइड-पुस्तिका. आईआईटी कानपुर के लिए मजलिस लीगल सेंटर द्वारा तैयार की गई, मूल स्रोत: Rights, A Comprehensive Guide to Women’s Rights
7. अनुराधा शंकर, अतिरिक्त महानिदेशक (प्रशिक्षण), मध्य प्रदेश पुलिस और डॉ. विनीत कपूर, उप निदेशक, मध्य प्रदेश पुलिस अकादमी के साथ इंटरव्यू के आधार पर
8. अनुराधा शंकर, अतिरिक्त महानिदेशक (प्रशिक्षण), मध्य प्रदेश पुलिस और डॉ. विनीत कपूर, उप निदेशक, मध्य प्रदेश पुलिस अकादमी के साथ इंटरव्यू के आधार पर
9.अनुराधा शंकर, अतिरिक्त महानिदेशक (प्रशिक्षण), मध्य प्रदेश पुलिस और डॉ. विनीत कपूर, उप निदेशक, मध्य प्रदेश पुलिस अकादमी के साथ इंटरव्यू के आधार पर
10. जयश्री बाजोरिया (2017, 9 नवंबर) Scroll.in में प्रकाशित लेख, मूल स्रोत: Doctors in India Continue to Traumatise Rape Survivors with the Two-Finger Test, Human Rights Watch
11. दिल्ली में बलात्कार के मुक़द्दमों की कार्यवाही पर हुआ एक विस्तृत अध्ययन:http://doj.gov.in/sites/default/files/PLD%20report.pdf
12. नेशनल लीगल सर्विस एथॉरिटी. मूल स्रोत:https://nalsa.gov.in/content/how-apply
13. दिल्ली में बलात्कार के मुक़द्दमों की कार्यवाही पर हुआ एक विस्तृत अध्ययन:http://doj.gov.in/sites/default/files/PLD%20report.pdf