कानूनी प्रक्रियाओं को बेहतर ढंग से समझने में आपकी मदद करने के लिए, यहां अक्सर पूछे जाने वाले सवालो की सूची दी गई है
डिस्क्लेमर: इस गाइड का मकसद पेशेवर सहायता, सलाह, या इलाज करना नहीं है. यह गाइड किसी भी रूप में उस प्रक्रिया की जगह नहीं ले सकती.
ट्रिगर की चेतावनी: ट्रिगर शब्द का मतलब है ऐसी कोई बात या घटना, जो किसी चीज़ का नकारात्मक कारण बन सकती है. इस टूलकिट में कुछ शब्द ऐसे हैं जो यौन हिंसा पीड़ितों के लिए दुखद हो सकते हैं यानी उनके लिए ट्रिगर का काम कर सकते हैं. इसका मतलब है उन शब्दों या वाक्यों को पढ़ने से पीड़ित या तो असहज महसूस कर सकते हैं या फिर चिंतित हो सकते हैं. ये ट्रिगर उन्हें खराब लगने वाली स्मृतियों में वापस ले जा सकते हैं. इस टूलकिट को पढ़ते समय अगर किसी को यह अनुभव होता है, तो एक ग्राउंडिंग एक्सरसाइज़ के ज़रिए वो तुरंत बेहतर महसूस कर सकते हैं.
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
क्या मुझे पुलिस के पास जाना चाहिए?
हाँ. अगर आपके साथ यौन उत्पीड़न, यौन हिंसा, मारपीट या बलात्कार की घटना हुई है तो आप नज़दीकी पुलिस स्टेशन में एफ़आईआर दर्ज करा सकती/सकते हैं. एफ़आईआर दर्ज करने पर, आपको यह सुनिश्चित करना होगा कि पुलिस केस रजिस्टर करे और संबंधित अदालत तक भेजने के लिए कार्यवाई करे. इसके लिए एफ़आईआर का पंजीकृत यानी रजिस्टर होना ज़रूरी है.
मुझे पुलिस के पास कब जाना चाहिए?
आपको अपराध को जल्द से जल्द रिपोर्ट करना चाहिए, बेहतर है घटना के 24 घंटों के भीतर. यदि आप स्वयं पुलिस से संपर्क करने की हालत में नहीं हैं, तो आपका परिवार पुलिस से संपर्क कर सकता है. अगर आप मामले की तुरंत रिपोर्ट नहीं करना चाहते, तो आपके पास भविष्य में ऐसा करने का अधिकार है. हालाँकि, कई बार, पुलिस पीड़ित की मदद करने के बजाय, पीड़ित को ही घटना के लिए दोषी ठहरा सकती है. यदि कोई पुलिस अफ़सर शिकायत दर्ज करने से मना कर दे या शिकायत को खारिज करे तो नीचे दिए गए सवाल और जवाब आपको अपने अधिकारों और विकल्पों को जानने में मदद कर सकते हैं.
अगर पुलिस अधिकारी एफ़आईआर दर्ज करने से इनकार कर देता है और शिकायत को खारिज कर देता है, तो पीड़ित क्या कर सकता है?
पुलिस के लिए एफ़आईआर दर्ज करना ज़रूरी यानी अनिवार्य है. यदि प्रभारी यानी इंजार्च पुलिस अफ़सर एफ़आईआर दर्ज करने से इनकार करता है, तो पीड़ित इसकी सूचना बड़े अफ़सर जैसे पुलिस अधीक्षक को लिखित रूप से दे सकते हैं. अधीक्षक खुद मामले की जांच कर सकता है या अपने नीचे मौजूद अधिकारियों को आदेश दे सकता है कि वो कार्रवाई करें14 कुछ राज्यों में ऑनलाइन शिकायत दर्ज करने का भी विकल्प है. बलात्कार, दहेज हत्या, जैसे अपराधों के लिए भी ई-एफ़आईआर दर्ज की जा सकती है, हालांकि, मार पीट और पीछा करने जैसे अपराधों के लिए ऑनलाइन, केवल शिकायत दर्ज की जा सकती है. मजिस्ट्रेट से अनुमति लेने के बाद इसे बाद में एक एफ़आईआर में बदला जा सकता है.
क्या मैं पुलिस को उस स्थान पर कॉल कर सकती/सकता हूं, जहां घटना हुई थी?
हां, आप पुलिस को अपराध के स्थान पर या जहां भी हैं, वहां बुला सकते हैं. जब पुलिस आती है, तो वे मौके पर ही एफ़आईआर दर्ज कर सकती है. ध्यान रखें कि पुलिस आपको एफ़आईआर दर्ज करने के लिए पुलिस स्टेशन में मौजूद होने या चलने के लिए मजबूर नहीं कर सकती है.
एफ़आईआर किस भाषा में दर्ज होनी चाहिए?
एफ़आईआर किसी भी भारतीय भाषा में दर्ज की जा सकती है. एफ़आईआर उस भाषा में दर्ज करें जिसमें आप सबसे अधिक सहज हैं. भाषा कोई भी हो एफ़आईआर लिखे जाने के बाद पुलिस के लिए ज़रूरी है कि वो एफ़आईआर आपको पढ़कर सुनाए ताकि आप जान सकें कि उन्होंने वो सभी बातें दर्ज की हैं जो आप कहना चाहते थे.
क्या शिकायत दर्ज करवाने के लिए एक महिला अधिकारी की उपस्थिति आवश्यक है?
यह ज़रूरी नहीं कि एफ़आईआर दर्ज करते समय कोई महिला पुलिस अधिकारी मौजूद हो लेकिन ज़्यादातर महिलाएं ऐसे में सहज महसूस करती हैं. यदि आप चाहें तो एक महिला पुलिस अधिकारी को उपस्थित होने के लिए कह सकती हैं15.
क्या मुझे एफ़आईआर पर हस्ताक्षर/साइन करने होंगे?
हाँ. यह बेहद ज़रूरी है कि आप एफ़आईआर पर हस्ताक्षर करें. एफ़आईआर पर तभी साइन करें जब पुलिस अधिकारी के अलावा आप खुद एफ़आईआर को पढ़ चुके हों. अगर पीड़ित अनपढ़ होने के चलते एफ़आईआर पर हस्ताक्षर नहीं कर सकती/सकता तो अंगूठा लगा सकते हैं.
मैं एक विकलांग महिला हूं और यौन हिंसा की शिकार हूं. क्या मेरे पास कोई अतिरिक्त अधिकार हैं?
कानून में विकलांग महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए कई प्रावधान और विकल्प हैं.
- उन्हें अपने घर या अपनी चुनी हुई किसी जगह पर पुलिस के साथ अपना बयान दर्ज करने का अधिकार है.
- शिकायत दर्ज करने और मुक़द्दमे के दौरान पीड़ित व्यक्ति के साथ एक दुभाषिया या सहायता के लिए कोई व्यक्ति मौजूद रह सकता है.
- इसके अलावा ये सूचना या जानकारी वीडियोग्राफी के ज़रिए दर्ज की जाएगी और पीड़ित के बयान की वीडियोग्राफी भी की जाएगी.
- यही नहीं, मजिस्ट्रेट के सामने दिया जाने वाला पीड़ित का बयान भी पुलिस अधिकारी द्वारा जल्द से जल्द दर्ज किया जाना चाहिए.
ज़ीरो एफ़आईआर क्या होती है?
अपराध चाहे जहां भी हुआ हो उससे संबंधित एफ़आईआर भारत के किसी भी पुलिस थाने में दर्ज की जा सकती है. इसे ज़ीरो एफ़आईआर कहा जाता है. पुलिस इसके लिए बाध्य है. उदाहरण के लिए, यदि अपराध नोएडा में हुआ था, लेकिन पीड़ित दिल्ली का/की निवासी है, तो वो दिल्ली में शिकायत दर्ज कर सकते हैं. इसके बाद आगे की जांच के लिए मामले को नोएडा के संबंधित पुलिस थाने में ट्रांसफर कर दिया जाएगा.
ज़ीरो एफ़आईआर दर्ज होने के बाद, क्या पीड़ित को दो बार मेडिकल जांच करवानी होगी?
पीड़ित को केवल एक बार मेडिकल जांच करवानी होगी. ज़ीरो एफ़आईआर केवल क्षेत्राधिकार (यानी अपराध की जगह और उससे संबंधित थाना) का मामला है, इसका मामले पर कोई असर नहीं होता. ज़ीरो एफ़आईआर अगर दिल्ली में दर्ज की गई है और मेडिकल जांच की जा चुकी है (और उसे अंतिम रूप दिया जा चुका है) तो कानूनी रूप से या किसी दूसरी प्रक्रिया के लिए उसे दोबारा कराए जाने की ज़रूरत नहीं है.
एफ़आईआर दर्ज होने के बाद, क्या इसमें दर्ज जानकारी को बदला जा सकता है?
एक बार एफ़आईआर दर्ज होने के बाद, इसमें लिखी गई बातों को बदला नहीं जा सकता है. हालाँकि, आप एफ़आईआर दर्ज होने के बाद किसी भी समय पुलिस को अतिरिक्त यानी घटना के बारे में और जानकारी दे सकते हैं.
क्या पीड़ित की पहचान सार्वजनिक की जाएगी?
पीड़ित की पहचान सार्वजनिक नहीं की जाती है. सुप्रीम कोर्ट ने प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को निर्देश दिए हैं कि किसी भी रूप में वो पीड़ित की पहचान को उजागर न करें. बलात्कार से पीड़ित व्यक्ति का नाम बताना आईपीसी (धारा 228-ए) के तहत अपराध है.
क्या मैं पुलिस से सुरक्षा मांग सकती/सकता हूं?
हां, यदि एफ़आईआर दर्ज करने के बाद आप अपनी सुरक्षा को लेकर आशंकित या डरे हुए हैं तो आप पुलिस से सुरक्षा के लिए पूछ सकते हैं. पुलिस के लिए सुरक्षा देना ज़रूरी है क्योंकि आप असुरक्षित और डरा हुआ महसूस कर रहे हैं16. अपनी सुरक्षा के लिए लेकर आप अदालत में गुहार लगा सकते हैं. अदालत से रीस्ट्रेनिंग ऑर्डर यानी इस बात का आदेश मिल सकता है कि आरोपी व्यक्ति को आपके पास आने या आपसे संपर्क करने की इजाज़त नहीं है. साथ ऐसे किसी व्यक्ति के खिलाफ निषेधाज्ञा (चेतावनी) का आदेश भी हो सकता है, अगर आपको लगता है कि वो व्यक्ति आपकी सुरक्षा के लिए ख़तरा है.
आरोपी कितने दिनों के लिए जेल जाएंगे?
अगर आरोपी को दोषी पाया जाता है, तो उसे कम से कम सात साल की जेल हो सकती है. हमले और कार्रवाई के आधार पर यह सज़ा आजीवन कारावास भी हो सकती है. इसके अलावा जुर्माना भी हो सकता है. अगर घटना को 'दुर्लभतम में भी दुर्लभ' (जैसे जघन्य हिंसा के मामले) करार दिया जाता है, तो आरोपी को मौत की सजा दी जा सकती है.
ऐसे भी मामले और उदाहरण हैं जहां अभियुक्तों को बरी किया गया यानी उनके खिलाफ मौजूद सभी मामले और आरोप हटा दिए गए और उन्हें निर्दोष माना गया). ऐसा कई वजहों से होता है, जिसमें सबूत की कमी, जांच एजेंसी/ पुलिस की विफलता, संदेह से परे मामले को साबित करने में अभियोजन पक्ष यानी केस दायर करने वाले की विफलता (जो बहुत आसान काम नहीं है). सामाजिक, सांस्कृतिक वजहों या पारिवारिक दबाव के चलते मामले को वापस ले लिया जाना, आरोपी का प्रभावशाली और दबंग होना या पीड़ित पर समझौता करने का दबाव होना.
क्या अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत लाए गए मामलों की सुनवाई के लिए विशेष अदालतें गठित हैं17?
अनुसूचित जाति और जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 यानी एससी/एसटी एक्ट के तहत दर्ज किए गए मामलों की सुनवाई इस अधिनियम के तहत बनाई गई विशेष अदालतों में ही होती है. इस तरह के एक्सक्लूसिव स्पेशल कोर्ट में होने वाली कार्यवाही वीडियो रिकॉर्ड की जाती है.
क्या अनुसूचित जाति या जनजाति से संबंध रखने वाले पीड़ितों के मामलों के लिए फैसले की कोई तय समय सीमा है?
कानून के मुताबिक ऐसी परिस्थिति में इन विशेष अदालतों को 2 महीने के अंदर मामले का फैसला सुनाना होता है. पीड़ित या आरोपी इस विशेष अदालत के फैसले को ऊंची अदालत में चुनौती दे सकते हैं. ऐसा होने पर उच्च न्यायालय को अपील दायर होने के तीन 3 महीने के अंदर अपील को सुनने और निपटाने का अधिकार दिया गया है.
मैं यौन हिंसा पीड़ित हूं और अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति वर्ग से हूं. क्या मैं किसी तरह की आर्थिक (वित्तीय सहायता) का/की हक़दार हूं?
पीड़ित, अनुसूचित अपराधों, जिनमें यौन अपराध, जैसे- हमला, अश्लील हरकत करना, पीछा करना, अपमान जनक बातें कहना, सामूहिक बलात्कार आदि शामिल हैं, के मामले में संबंधित राज्य सरकारों से आर्थिक (वित्तीय मदद) का दावा कर सकते हैं. जांच, पूछताछ और अदालती कार्यवाही के दौरान पीड़ित यात्रा और दूसरे खर्च की भरपाई के हक़दार हैं. इसके अलावा अदालती कार्यवाही के दौरान पीड़ित को सामाजिक-आर्थिक पुनर्वास के लिए भी मदद दी जाती है.
क्या मैं स्वतंत्र रूप से (अपने आप) मेडिकल जांच के लिए डॉक्टर के पास जा सकती/सकता हूं?
हां, आप अपने आप भी मेडिकल जांच के लिए जा सकते हैं. ऐसे मामलों में, डॉक्टर एक नियम से बंधे होते हैं जिसे अनिवार्य रिपोर्टिंग कहा जाता है.
मेडिकल जांच करवाने के लिए किसी खास अस्पताल में जाना चाहिए?
कानूनी रूप से निजी अस्पताल के पंजीकृत डॉक्टर भी आपको इलाज करने और सबूत इकट्ठा करने के लिए बाध्य हैं. इसलिए यह ज़रूरी नहीं कि आप सरकारी अस्पताल जाएं. बलात्कार पीड़ित के इलाज से इनकार करना आईपीसी की धारा 166 बी के तहत दंडनीय अपराध है, जिसके लिए, एक साल तक की कैद, या जुर्माना या दोनों हो सकते हैं. डॉक्टरों के लिए ये ज़रूरी है कि वो यौन हिंसा पीड़ितों को सभी ज़रूरी इलाज और इससे जुड़ी मदद दें.
क्या मेडिकल जांच के लिए जाने से पहले पीड़ित नहा सकते है?
बेहतर ये है कि मेडिकल जांच पूरी से पहले पीड़ित नहाना, शरीर की सफाई, कपड़े बदलने, शौचालय जाना (पेशाब या मल त्याग) जैसे काम न करें. हालांकि, ऐसा हो पाना हमेशा संभव नहीं है. ऐसी स्थिति में ध्यान रखें कि सबूत खो सकते हैं. मेडिकल रिपोर्ट में जांच में देरी की वजह बताई जानी चाहिए और नहाने या कपड़े बदलने जैसी किसी भी गतिविधी का ज़िक्र होना चाहिए ताकि सबूत नष्ट होने की बात को समझा जा सकते.
यौन अपराध की रिपोर्ट करने के लिए मुझे किस नंबर पर कॉल करना चाहिए?
आप स्थानीय पुलिस से उनके हेल्पलाइन नंबर: 100 पर संपर्क कर सकते हैं. राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) ने महिलाओं के लिए एक राष्ट्रीय हेल्पलाइन (1091) शुरू की है. आप भारत में कहीं भी यौन अपराध की रिपोर्ट करने के लिए 1091 डायल कर सकते हैं. आपको अपराध का विवरण, अपना पता और फोन नंबर देना होगा. आपकी मदद के लिए जल्द ही एक पुलिस यूनिट आपके पास पहुँचेगी. आप, भारत के सभी राज्यों में काम करने वाली 181 नंबर हेल्पलाइन भी डायल कर सकते हैं.
अगर किसी ने मुझे ऑनलाइन भद्दे/आपत्तिजनक संदेश भेजे हैं तो मैं क्या कदम उठा सकती/सकता हूं?
इंटरनेट के ज़रिए किए गए अपराध (जैसे ट्रोलिंग, रिवेंज पोर्न यानी किसी व्यक्ति की अश्लील तस्वीरें बिना अनुमति साझा करना) पुलिस स्टेशन के साइबर सेल में रिपोर्ट किए जा सकते हैं. आप गृह मंत्रालय के ऑनलाइन अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल का इस्तेमाल करके भी शिकायत दर्ज कर सकते हैं. आपको अपने बारे में, आरोपी के बारे में और घटना के बारे में जानकारी देने के अलावा आपके पास मौजूद सबूतों की जानकारी देनी होगी. आप ऑनलाइन मौजूद अश्लील सामग्री को लेकर साइबर क्राइम रिपोर्टिंग पोर्टल पर सीधे भी शिकायत दर्ज कर सकते हैं18.
क्या मुझे सुनवाई की हर तारीख को अदालत जाना होगा?
एफ़आईआर दर्ज करने के बाद आपको बयान दर्ज करने के लिए मजिस्ट्रेट के सामने पेश होना होगा. इसके बाद सरकारी वकील मामले को आगे बढ़ाता है और आपके लिए सुनवाई की हर तारीख को अदालत में मौजूद रहना ज़रूरी नहीं. बाद में आपको सबूत दर्ज करने के लिए बुलाया जाएगा.
क्या पीड़ित को सरकारी वकील की सेवाओं के लिए कोई फ़ीस चुकानी पड़ती है?
नहीं, सेवाएं नि: शुल्क प्रदान की जाती हैं.
केस निपटने या फैसला सुनाए जाने की समय सीमा क्या है.
इसकी कोई अनिवार्य समय सीमा नहीं है, लेकिन मामले को फास्ट-ट्रैक करने यानी तेज़ी से सुनवाई और फैसला जल्द सुनाए जाने पर ज़ोर दिया जाता है.
पीड़ित ऐसे कौन से सबूत बचा सकता है जो कानूनी प्रक्रिया में मदद कर सकें?
पीड़ित द्वारा इकट्ठा किया गया या बचा कर रखा गया हर सबूत ज़रूरी और स्वीकार्य है. दूसरा पक्ष इसकी वैधता पर सवाल उठा सकता है, लेकिन पीड़ित के पास इस बात का पूरा अधिकार है कि वो अपने केस को मज़बूत बनाने के लिए कोई भी सबूत कोर्ट में पेश करे.
यौन हिंसा पीड़ित के रूप में, क्या मैं मुआवज़े की/का हक़दार हूं?
“मुआवज़ा” वो रकम है जो किसी व्यक्ति को उसके नुकसान, पीड़ा या चोट की स्वीकृति और भरपाई के रुप में दिया जाता है. भारतीय दंड संहिता के मुताबिक पीड़ित को राज्य स्तरीय योजनाओं के तहत मुआवज़ा दिया जाता है. यौन हिंसा और दूसरे अपराधों से पीड़ित महिलाओं के लिए लागू की गई क्षतिपूर्ती योजना 2018 के मुताबिक पीड़ित या उस पर आश्रित व्यक्ति, राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण या ज़िला विधिक सेवा प्राधिकरण के समक्ष अंतरिम/अंतिम मुआवज़े के लिए आवेदन कर सकता है.
यह ज़रूरी है कि एफ़आईआर दर्ज की जाए और उसकी एक कॉपी स्टेशन अफ़सर/पुलिस अधीक्षक/पुलिस उपायुक्त द्वारा राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण या ज़िला विधिक सेवा प्राधिकरण के साथ साझा की जाए ताकि पहले चरण की जांच के बाद अंतरिम मुआवज़ा दिया जा सके. "अंतरिम मुआवजा" वह धनराशि है जो पीड़ित को एफ़आईआर दर्ज करने और मुक़द्दमे के फैसले के बीच मदद के लिए दी जा सकती है. यह पूरी राशि का कुछ फ़ीसदी हिस्सा होता है.
मुआवज़ा देने के लिए कई चीज़ों पर ध्यान दिया जाता है, जैसे: अपराध कितना गंभीर था, पीड़ित कितनी बुरी तरह घायल थी/था, पीड़ित के आर्थिक हालात आदि.
इसके अलावा, दिया गया अंतरिम मुआवज़ा, सरकारी योजना के तहत दिए जाने वाले अधिकतम मुआवज़े के पच्चीस फ़ीसदी से कम नहीं होगा. इसमें मुआवज़े की न्यूनतम और अधिकतम सीमा भी बताई गई है. उदाहरण के लिए, बलात्कार पीड़ित के लिए मुआवज़े की न्यूनतम सीमा चार लाख रुपए और ऊपरी सीमा सात लाख रुपए है.
मुआवज़े का दावा करने की समय सीमा: योजना में यह भी निश्चित किया गया है कि अपराध होने या मुकदमा खत्म होने की तारीख से 3 साल की अवधि के बाद मुआवज़े के लिए दावा नहीं किया जा सकता.
मुआवज़ा: किसी व्यक्ति की हानि, पीड़ा, या चोट की स्वीकृति यानी पहचान के रूप में दी गई धनराशि है.
अंतरिम मुआवज़ा: वह धनराशि है जो पीड़ित को एफ़आईआर दर्ज करने और मुक़द्दमे के फैसले के बीच मदद के लिए दी जा सकती है. नियम के अनुसार अंतरिम मुआवज़ा सरकारी योजना के तहत दिए जाने वाले अधिकतम मुआवज़े के 25 फ़ीसदी से कम नहीं होगा.
अंतिम मुआवज़ा: योजना के तहत पीड़ित को दी जाने वाली पूरी धनराशि.
कोर्ट की कार्यवाही कब तक चलेगी?
कानून भले ही यह कहता है कि मामलों की सुनवाई और उनका फैसला जल्द से जल्द किया जाए निचली अदालतों में मुक़द्दमे अक्सर दो साल से भी ज़्यादा समय से चल रहे हैं. अदालती कार्यवाही "कैमरे की मौजूदगी में" होती है इसलिए आम जनता, मुक़द्दमे से जुड़े दूसरे पक्षों और दूसरे वकीलों को अदालत कक्ष से बाहर जाने को कहा जाता है. केवल मामले से जुड़े वकील, आरोपी, पीड़ित के परिवार वाले और अदालत के कर्मचारी ही अदालत कक्ष के अंदर रह सकते हैं.
अदालत की कार्यवाही किस भाषा में होगी?
पीड़ित व्यक्ति जिस भाषा में सहज होता है उस भाषा में कार्यवाही होती है. पीड़ित के पास या तो अदालत कक्ष में या आसपास के कमरे में वीडियो लिंक के माध्यम से गवाही देने का विकल्प भी होता है19.
यदि आप महिलाओं के खिलाफ विभिन्न प्रकार के अपराधों के बारे में अधिक जानना चाहते हैं, तो कृपया देखें अनुबंध ४
संदर्भ-निर्देश
14. न्याय, भारतीय कानून की व्याख्या. प्रथम सूचना रिपोर्ट. मूल स्रोत: https://nyaaya.org/police-and-courts/fir/how-to-file-an-fir/
15. न्याय, भारतीय कानून की व्याख्या. महिलाओं से जुड़े अपराधों के मामले में दायर एफ़आईआर. मूल स्रोत: https://nyaaya.org/police-and-courts/fir/fir-filed-for-women-related-offences/
16. अनुराधा शंकर, अतिरिक्त महानिदेशक (प्रशिक्षण), मध्य प्रदेश पुलिस और डॉ. विनीत कपूर, उप निदेशक, मध्य प्रदेश पुलिस अकादमी के साथ इंटरव्यू के आधार पर.
17. अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989
18.न्याय, भारतीय कानून की व्याख्या. यौन अपराधों की सूचना दर्ज करवाना. मूल स्रोत: https://nyaaya.org/topic/sexual-crimes/
19. दिल्ली में बलात्कार के मुक़द्दमों की कार्यवाही पर हुआ एक विस्तृत अध्ययन (जनवरी 2014-मार्च 2015). बलात्कार मामलों में सुनवाई को लेकर, पीड़ितों के अनुकूल कार्रवाई और प्रक्रियाएँ